भारत बनाम अमेरिका: डिजिटल टैक्स की वह कहानी जिसने वैश्विक राजनीति बदल दी

डिजिटल दुनिया में सत्ता का संतुलन तेजी से बदल रहा है। इंटरनेट कंपनियों की ताकत अब किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। कभी अमेरिका एकमात्र ऐसा देश माना जाता था जो वैश्विक डिजिटल नीतियों का स्वर तय करता था, लेकिन अब भारत ने यह साबित कर दिया है कि नई सदी में नियम भी दक्षिण से बनेंगे।बीते कुछ महीनों में “डिजिटल टैक्स” और “टैरिफ वॉर” जैसे शब्द सुर्खियों में रहे  खासकर तब, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत, फ्रांस और इटली जैसे देशों को चेतावनी दी कि जो भी देश अमेरिकी टेक कंपनियों पर डिजिटल सर्विस टैक्स लगाएगा, उसके खिलाफ अमेरिका भारी टैरिफ और निर्यात प्रतिबंध लगाएगा

ट्रंप का अमेरिका फर्स्ट और भारत पर हमला

साल 2025 में ट्रंप प्रशासन ने अपनी आर्थिक नीति के तहत फिर से “अमेरिका फर्स्ट” का नारा उठाया। उनका मानना है कि विदेशी बाजारों में अमेरिकी कंपनियों पर टैक्स लगाना अनुचित है। इसी पॉलिसी के तहत उन्होंने भारत सहित कई देशों पर नई टैरिफ धमकियां दीं।
ट्रंप ने कहा — “जो देश अमेरिकी टेक कंपनियों पर डिजिटल सर्विस टैक्स लगाएंगे, वे हमारे दुश्मन माने जाएंगे। हम समान शुल्क लगाएंगे — वे जो शुल्क लगाते हैं, हम भी वही लगाएंगे।” �यह बयान केवल व्यापारिक विवाद नहीं था, बल्कि उस डिजिटल शक्ति के प्रति डर को दिखाता था जो भारत जैसे देशों का आकार ले रही थी। अमेज़न, गूगल, एप्पल और मेटा जैसी कंपनियाँ आज भारत से अरबों डॉलर कमाती हैं, और भारत चाहता था कि इन कमाई पर उचित कर दिया जाए।

डिजिटल टैक्स क्या है?

डिजिटल सर्विस टैक्स वह कर है जिसे सरकार उन विदेशी डिजिटल कंपनियों पर लगाती है जो किसी देश में ऑनलाइन सेवाएँ या विज्ञापन चलाकर वहां के उपभोक्ताओं से आमदनी कमाती हैं, भले ही उनका दफ्तर वहां न हो �।भारत ने इसे वर्ष 2020 में “Equalisation Levy” के नाम से लागू किया, जिसके अंतर्गत:विदेशी ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं पर 6% टैक्स,और ई‑कॉमर्स ऑपरेटरों पर 2% टैक्स लागू किया गया।सरकार का तर्क था कि अगर कोई कंपनी भारत के उपभोक्ताओं से लाभ कमा रही है, तो उसे भारत में टैक्स देना ही पड़ेगा 

भारत का कदम क्यों था ऐतिहासिक

टैक्स लगाने के पहले ही Google, Amazon और Apple भारत से हर साल हजारों करोड़ कमाते थे �। फिर भी वे औपचारिक रूप से टैक्स जमा नहीं कर रहे थे।भारत के डिजिटल टैक्स ने शुरुआत में अमेरिका को असहज किया। ट्रंप प्रशासन ने WTO तक मामला लेकर जाने की धमकी दी, लेकिन भारत ने स्पष्ट कहा — “यह किसी देश के खिलाफ़ नहीं, बल्कि हमारे टेक्स अधिकारों का प्रयोग है।”

ट्रंप का कड़ा जवाब – टैरिफ मिसाइल

अगस्त 2025 में ट्रंप ने कनाडा और भारत दोनों पर एक साथ टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि “जो भी देश अमेरिकी टेक कंपनियों पर डिजिटल सर्विस टैक्स लगाएंगे, उनके साथ ट्रेड डील खत्म कर दी जाएगी ।ट्रंप ने भारत से आने वाले उत्पादों पर 50% तक आयात शुल्क बढ़ा दिया । परिणाम यह हुआ कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव नई ऊंचाई पर पहुंच गया। विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिका का यह कदम उल्टा पड़ सकता था, क्योंकि भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा टेक मार्केट है।

भारत की नीति: अब नियम भारत लिखेगा

दिल्ली के सत्ताधारी महलों से संदेश साफ़ था — भारत किसी भी दबाव में नहीं आएगा। सरकार ने संकेत दिया कि अगर अमेरिका ने दबाव बनाया तो डिजिटल टैक्स 4% तक बढ़ाया जा सकता है।एक वरिष्ठ अधिकारी के शब्दों में, “जो कंपनी भारत के यूज़र्स से कमा रही है, उसे टैक्स भी भारत में देना होगा।यह भारत की डिजिटल सॉवरेनटी का घोषणापत्र थी एक स्पष्ट संदेश कि भारत को अब केवल “बाज़ार” समझने का युग खत्म हो चुका है।

अमेरिकी कंपनियों की रणनीति में बदलाव

  • भारत के कठोर रुख के बाद अमेरिकी कंपनियों को स्थानीय ऑपरेशन्स बढ़ाने पड़े।Amazon ने भारत में ग्रामीण लॉजिस्टिक्स नेटवर्क में निवेश किया।Apple ने iPhone उत्पादन भारत में बढ़ाया।Meta ने डेटा‑सेंटर प्रोजेक्ट शुरू किए।यह सभी कदम केवल व्यापारिक रणनीति नहीं, बल्कि भारत की डिजिटल संप्रभुता की स्वीकृति थे।

भारत पर अमेरिकी टैरिफ का असर

ट्रंप के 50% टैरिफ से अल्पकालीन दबाव तो ज़रूर बढ़ा, लेकिन लंबे समय में आर्थिक संतुलन भारत के पक्ष में गया । भारत से आयात महंगा हुआ, पर अमेरिका के उपभोक्ताओं को भी लागत का सामना करना पड़ा। विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह कदम “आत्मघाती” साबित हो सकता है क्योंकि इससे अमेरिकी महंगाई भी बढ़ी।

डिजिटल युग में भारत की नई भूमिका

भारत का डिजिटल टैक्स सिर्फ़ एक आर्थिक नीति नहीं, बल्कि नई विश्व राजनीति का घोषणापत्र है। इसके माध्यम से भारत ने यह जनाया कि जिस देश में 70 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूज़र्स हैं, वह अब सिर्फ़ डेटा दात्री नहीं, बल्कि नियम निर्माता है।यह कहानी भारत के उस आत्मविश्वास की है जिसने अमेरिका जैसे महाशक्ति को भी नीतिगत स्तर पर चुनौती दी। भारत ने दुनिया को दिखाया कि संप्रभुता सिर्फ़ सीमाओं से नहीं, बल्कि डिजिटल डेटा और नीतियों से भी सुरक्षित रखी जाती है।आज जब दुनिया डिजिटल करणीय युद्ध में उतर आई है, भारत ने यह संदेश दिया है कि अब जो भी यहां से कमाएगा, वह भारत के नियम भी मानेगा। यह सिर्फ़ एक करात्मक कदम नहीं, बल्कि “डिजिटल भारत की घोषणा है  जो आने वाले दौर में दुनिया की डिजिटल नीतियों का दिशासूचक बनेगा

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